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ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस : परिभाषा, प्रकार, कारण, लक्षण, जांच और इलाज – All About glomerulonephritis in Hindi

ग्लोमेरुलर डिजीज की परिभाषा – glomerulonephritis definition in hindi

ग्लोमेरुलर डिजीज को ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में किडनी में खून को साफ करने के लिए मौजूद फिल्टरनुमा छोटे – छोटे छिद्र में सूजन आ जाता है। ग्लोमेरुलर डिजीज के कारण किडनी की कार्य क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है तथा इसके खून को साफ करने तथा कुछ खास तत्वों को खून में बनाए रखने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाता है।

सामान्य स्तिथि में किडनी खून से हानिकारक तत्वों को अलग कर के मूत्र के द्वारा उसे शरीर से बाहर कर देता है तथा खून में लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) तथा प्रोटीन की मात्रा को बनाए रखता है। लेकिन ग्लोमेरुलर डिजीज से ग्रस्ति व्यक्ति में यह सामान्य रूप से नही हो पाता है। इस बीमारी की स्तिथि में आरबीसी तथा प्रोटीन भी मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर आ जाते हैं तथा खून भी साफ नही हो पाता है। इस कारण हानिकारक तत्व खून में ही रह जाते हैं।

ग्लोमेरुलर डिजीज अपने आप भी हो सकता है। यह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करने वाली बीमारियों जैसे ल्यूपस, डायबिटीज या कुछ खास प्रकार के संक्रमण इत्यादि होने के कारण भी हो सकता है। ग्लोमेरुलर डिजीज अचानक भी हो सकता है या कभी – कभी यह समय के साथ उतपन्न होता है।

अचानक होने वाले ग्लोमेरुलर डिजीज को एक्यूट ग्लोमेरुलर डिजीज कहते हैं जबकि समय के साथ धीरे – धीरे उतपन्न होने वाले ग्लोमेरुलर डिजीज को क्रोनिक ग्लोमेरुलर डिजीज कहा जाता है। ग्लोमेरुलर डिजीज का इलाज इसके प्रकार तथा इसके होने के कारण पर निर्भर करता है।

ग्लोमेरुलर डिजीज के प्रकार – glomerulonephritis Types in hindi

सामान्यतः ग्लोमेरुलर डिजीज निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं :

• नेफ्राइटिक (nephritic)
• नेफ्रोटिक (nephrotic)

कुछ परिस्थितियों में ये दोनो प्रकार एक साथ भी देखने को मिल सकते हैं।

नेफ्राइटिक ( nephritic in Hindi) – इस प्रकार के ग्लोमेरुलर डिजीज की सबसे बड़ी पहचान यह है की इसमें मूत्र (पेशाब) में खून आने लगता है। इस स्तिथि को हेमट्यूरिया कहा जाता है। नेफ्राइटिक के शुरुआत में किडनी के काम करने के तरीकों में कोई खास बदलाव देखने को नही मिलता है। सामान्यतः शुरुआत में तो किसी प्रकार के लक्षण भी देखने को नही मिलते हैं। इस कारण अधिकतर यह समय पर पता नही चल पाता है। जिस कारण इलाज भी नही हो पाता है। हालांकि सामान्य रूप से किए जाने वाले मूत्र जांच में खून तथा प्रोटीन की उपस्थित से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

नेफ्रोटिक (nephrotic in Hindi)- नेफ्रोटिक सिंड्रोम से ग्रसित व्यक्ति के मूत्र के साथ प्रोटीन भी आने लगता है। इसे प्रोटीनुरिया के नाम से जाना जाता है। कुछ मामलों में मूत्र में खून तथा प्रोटीन दोनो ही देखने को मिल सकते हैं। लेकिन इसमें खून की मात्रा कम रहती है। जैसे – जैसे नेफ्रोटिक सिंड्रोम गंभीर होने लगता है, किडनी की कार्य क्षमता (फंक्शन) बुरी तरह प्रभावित होता चला जाता है।

ग्लोमेरुलर डिजीज होने के कारण – glomerulonephritis Cause in hindi

अलग – अलग प्रकार के कई ऐसी बीमारियां हैं जो की ग्लोमेरुलर डिजीज का कारण बन सकता है। ग्लोमेरुलर डिजीज किसी संक्रमण के कारण भी हो सकता है तो कभी कभी यह किसी दवाई के सेवन से किडनी पर पड़े बुरे प्रभाव के कारण भी हो जाता है। इसके अलावा यह पूरे शरीर को प्रभावित करने वाली बीमारियों जैसे ल्यूपस, डायबिटीज इत्यादि के कारण भी हो सकता है। इस सब के बाद भी ग्लोमेरुलर डिजीज होने के कुछ संभावित कारण निम्नलिखित हैं :

• ऑटोइम्यून डिजीज
• आई जी ए (IgA) से संबंधित ग्लोमेरुलर डिजीज
• स्क्लेरोटिक बीमारी के कारण
• डायबिटीज के कारण हुए किडनी की बीमारी के कारण
• फोकल सेग्मेंटल ग्लोमेरुलोस्क्लेरोसिस ( इसमें सामान्यतः ग्लोमेरुलस का सीमित भाग ही प्रभावित होता है तथा कुछ ही छिद्र प्रभावित होते हैं)

ग्लोमेरुलर डिजीज के लक्षण – glomerulonephritis Symptoms in hindi

ग्लोमेरुलर डिजीज के लक्षण इस बात पर निर्भर करता है की, ग्लोमेरुलर डिजीज एक्यूट है या क्रोनिक। इसके अलावा यह इस पर भी निर्भर करता है की इसके होने का कारण क्या है।
इसके कुछ सामान्य तौर पर देखें जाने वाले लक्षण निम्नलिखित हैं :

• मूत्र में आरसीबी की उपस्थिति के कारण मूत्र का रंग गुलाबी या काले रंग का होना
• मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति के कारण अधिक झाग बनना
• रक्तचाप बढ़ा हुआ रहना
• शरीर में पानी जमा होने के कारण हांथ, पैर, चेहरे तथा पेट का फूल जाना
• एनीमिया के कारण थकावट होना
• किडनी का फेल हो जाना

ग्लोमेरुलर डिजीज होने का खतरा किसे अधिक है – glomerulonephritis risk factor in hindi

कुछ ऐसी स्तिथि है जिसके होने पर किसी व्यक्ति को ग्लोमेरुलर डिजीज होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। ये स्तिथि निम्नलिखित हैं :

• ग्लोमेरुलर डिजीज होने का पारिवारिक इतिहास
• ग्लोमेरुलर डिजीज पैदा करने वाले बीमारी से ग्रसित होना
• उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर)

ग्लोमेरुलर डिजीज के लिए जांच – glomerulonephritis Tests in hindi

ग्लोमेरुलर डिजीज की जांच खून तथा मूत्र जांच के द्वारा किया जा सकता है। इसके अलावा इसकी और गहराई से जांच के लिए तथा ग्लोमेरुलर डिजीज के प्रकार का पता लगाने के लिए कुछ अन्य जांच भी किए जाते हैं। ग्लोमेरुलर डिजीज की जांच के लिए सामान्य रूप से किए जाने वाले जांच निम्नलिखित हैं :

• मूत्र जांच
• खून जांच ( इसमें क्रिटनीन तथा ब्लड यूरिया नाईट्रोजन की जांच की जाती है)
• पेट का सिटी स्कैन

ग्लोमेरुलर डिजीज का इलाज – glomerulonephritis treatment in hindi

ग्लोमेरुलर डिजीज का इलाज इस बात पर निर्भर करता है की ग्लोमेरुलर डिजीज एक्यूट है या क्रोनिक। इसके अलावा इसका इलाज इसके होने के कारण तथा दिखने वाले लक्षणों की गंभीरता पर भी निर्भर करता है। कुछ प्रकार के ग्लोमेरुलर डिजीज, जो की संक्रमण के कारण होता है, वह कुछ सामान्य इलाज के बाद ठीक हो जाता है। जबकि कुछ अन्य प्रकार के ग्लोमेरुलर डिजीज के इलाज के लिए इम्यूनस्प्रेसेंट दवाओं की ज़रूरत पड़ सकती है।

कुल मिला कर देखें तो, सभी परिस्थितियों में किडनी के कार्य क्षमता को बेहतर करने तथा किडनी के और संभावित नुकसान को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने पड़ सकते हैं :

दवाओं द्वारा इलाज

• शरीर में जमा हुए पानी को कम करने के लिए डाइयुरेटिक्स
•इम्यून सिस्टम को दबाने के लिए कुछ दवाइयां जैसे – स्टेरॉयड
• प्रोटीन के लीकेज तथा रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए इंजीयोटेंसिन कंवरटिंग एंजाइम (एसीई)

जीवनशैली में बदलाव

• नमक एंव पानी का कम सेवन करें।
• पोटेशियम, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम युक्त चीज़ों का सेवन कम से कम कर दें।
• प्रोटीन युक्त आहार की मात्रा भी कम कर दें।
• संतुलित आहार तथा व्यायाम के द्वारा वज़न की बिल्कुल नियंत्रित रखें।
• कैल्सियम युक्त चीज़ों का सेवन करें।

डायलिसिस एंव किडनी ट्रान्सप्लांट (किडनी प्रत्यारोपण)

अगर किडनी पर्याप्त मात्रा में खून से हानिकारक तत्वों को अलग नही कर पा रहा है, तो इस स्तिथि में डायलिसिस करवाने की आवश्यकता पड़ सकती है। अगर मरीज़ एक्यूट ग्लोमेरुलर डिजीज से ग्रसित है तो कुछ ही समय के डायलिसिस के बाद वह ठीक हो जाता है। लेकिन, अगर यह क्रोनिक ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस में बदल चुका है तो फिर हमेशा डायलिसिस करवाना होगा।

इस स्तिथि में दूसरा विकल्प किडनी ट्रान्सप्लांट का है। इस स्टेज से किडनी फेल हो जाता है। ऐसे में किडनी ट्रान्सप्लांट करवाना पड़ सकता है।

किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में और अधिक जाने –

नोट- इस लेख में बताई गई जानकारियों को केवल जानकारी के तौर पर ही लें। इलाज संबंधित कोई भी फैसला डॉक्टर की सलाह पर ही लें।

धन्यवाद

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