हेमोडायलिसिस अर्थ – Hemodialysis definition in hindi
हेमोडायलिसिस खून से खतरनाक तत्वों को माशिन के द्वारा अलग करने की प्रक्रिया है। जो काम स्वस्थ किडमी आमतौरसे करता है, वही काम किडनी की बीमारी होने की स्तिथि में हेमोडायलिसिस द्वारा किया जाता है। किडनी बीमारी होने की स्तिथि में इलाज के लिए हेमोडायलिसिस सामान्य रूप उपयोग में आने वाला तकनीक है। इस प्रक्रिया में नोफ्रोलॉजिस्ट, डायलिसिस नर्स, डायलिसिस तकनीशियन तथा मरीज़ की भागीदारी होती है। हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया में खून को शरीर के बाहर निकाल कर कृत्रिम रूप से तैयार किए हुए किडनी, जिसे डाइलायज़र कहा जाता है, से साफ करने के बाद पुनः शरीर में डाला जाता है।

• स्वस्थ किडनी क्या करता है? Function of kidney in Hindi
स्वस्थ किडनी आपके शरीर से आवश्यकता से अधिक पानी, नमक तथा अन्य हानिकारक तत्वों को मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देता है। किडनी कुछ हार्मोन भी बनाता है। इसके अलावा हड्डी को मज़बूत बनाने के लिए आवश्यक विटामिन डी भी कुछ मात्रा में बनता है। शरीर में आरबीसी के निर्माण के लिए आवश्यक रिथ्रोपोइटिन भी किडनी ही बनाता है।
जब किडनी काम करना बन्द कर देता है तो इस स्तिथि में शरीर से खतरनाक आवांक्षित पदार्थ बाहर नही निकल पाता है। यह शरीर में ही रह जाता है। इस कारण भूख लगना कम हो जाता है, थकान, कमज़ोरी, वज़न घटने, रक्चाप बढ़ने की समस्या तथा शरीर में अधिक पानी जमा होने इत्यादि की समस्या आने लगती है। शरीर में पानी जमा होने के कारण टखने में सूजन आ जाता है, फेफड़े में पानी जाने के कारण व्यक्ति जल्दी जल्दी सांस लेने लगता है।
• हेमोडायलिसिस क्या करता है – Hemodialysis procedure in hindi
हेमोडायलिसिस में मरीज़ के शरीर से खून बाहर निकाल लिया जाता है तथा इसे एक विशेष फिल्टर से गुज़ारा जाता है। इस फिल्टर को डाइलायज़र या कृत्रिम किडनी कहा जाता है। जब खून को इससे गुज़ारा जाता है तो यह फिल्टर खून से आवांक्षित पदार्थों तथा जल को अलग कर देता है।
इसके बाद फिर खून साफ होने के बाद वापस आपके शरीर में डाल दिया जाता है। यह आपके रक्तचाप को नियंत्रित रखता है तथा शरीर में आवश्यक रसायनों जैसे एसिड, पोटेशियम तथा सोडियम की मात्रा को खून में उचित मात्रा में बनाए रखता है। किडनी फेल होने की स्तिथि में मरीज़ को एक सप्ताह में 3 बार डायलिसिस करवाना पड़ता है। डायलिसिस का प्रत्येक सत्र 4 – 4 घण्टे का होता है। डायलिसिस का समय डायलिसिस विभाग की उपलब्धता तथा क्षमता पर निर्भर करता है।
• वस्कुलर एक्सेस – vascular access in Hindi
हेमोडायलिसिस से पहले एक ज़रूरी चीज़ वस्कुलर एक्सेस को तैयार करना है। वस्कुलर एक्सेस के तहत शरीर पर एक ऐसे जगह का चुनाव किया जाता है जहां से हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया के लिए खून निकाला एवं डाला जाता है। फिस्टुला, वस्कुलर एक्सेस का सबसे सामान्य प्रकार है।
वस्कुलर एक्सेस को हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया के कम से कम 6 से 8 हफ्ता पहले ही तैयार करना होता है। इसे तैयार करने के लिए एक छोटे ऑपरेशन के द्वारा हाथ में एक आर्टरी को एक नस के द्वारा जोड़ा जाता है। ऐसा इसके बहाव को तेज़ करने के लिए किया जाता है। हेमोडायलिसिस शुरू करने से पहले फिस्टुला में एक निडिल डाला जाता है तथा डायलिसिस के बाद इसे हटा दिया जाता है।
• सेंट्रल वेनस डायलिसिस कैथेटर – Central venous dialysis catheter
जब किसी मरीज़ को अचानक से डायलिसिस की ज़रूरत होती है, तो इस स्तिथि में एक डायलिसिस कैथेटर कमर के पास या नस में डाला जाता है। यह 2 से 3 दिन तक उपयोग किया जाता है। इसके अलावा यह कैथेटर गर्दन के पास इंटरनल जुगुलर वेन में भी डाला जा सकता है। ये कैथेटर नली या बिना नली वाला हो सकता है। उसके अलावा गर्दन के पास एक त्वचा के अंदर एक नली बनाया जाता है। इसे प्रमाकैठ कहा जाता है। इसका उपयोग डायलिसिस के लिए कई महीनों से लेकर साल भर तक करना सुरक्षित रहता है। नली वाले कैथेटर में संक्रमण भी काफी कम रहता है।
● हेमोडायलिसिस के फायदे – Benefit of hemodialysis
• इसे हफ्ते में 3 बार करना होता है, प्रत्येक दिन इस प्रक्रिया को करने की आवश्यकता नही है।
• इस प्रकार के डायलिसिस में आपको कुछ भी व्यवस्था करने की ज़रूरत नही है।
• हेमोडायलिसिस की स्तिथि में आपको किसी मशीन को साथ ले कर चलने की ज़रूरत नही है।
• डायलिसिस की प्रक्रिया अनुभवी तकनीशियन से करवाने पर आपको किसी प्रकार के अन्य चिंता की आवश्यकता नही है।
● हीमोडायलिसिस के नुकसान – Adverse effect of hemodialysis
• आपको डायलिसिस करवाने के लिए हफ्ते में 3 दिन हॉस्पिटल या डायलिसिस विभाग तक आना होता है।
• अगर हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया में सेंट्रल वेनस कैथेटर का उपयोग किया जा रहा है तो इससे संक्रमण फैलने की अधिक संभावना रहती है।
• इसमें आपको डायलिसिस के लिए नर्स या तकनीशियन पर निर्भर रहना पड़ता है।
• वैसे तो डायलिसिस की प्रक्रिया में दर्द नही होता है, लेकिन फिस्टुला में निडिल डालते समय थोड़ा दर्द हो सकता है।
• हेमोडायलिसिस के मरीज़ में रक्तचाप का ऊपर नीचे होना काफी सामान्य होता है। ऐसे में विशेष सावधानियां बरतने की ज़रूरत होती है।
• डायलिसिस की प्रक्रिया के बाद तथा बाद में आपको वज़न चेक करना होता है।
• नियमित रूप से रक्तचाप, प्लस, शरीर का तापमान, सांस लेने प्रक्रिया इत्यादि को जांचना पड़ता है।
• डायलिसिस के स्तिथि को जानने के लिए हर महीने लैब जांच
• बिल्कुल समय पर दवाई लेना ज़रूरी होता है।
• सीमित आहार लेना पड़ता है। सोडियम का सेवन बन्द कर दिया जाता है। इसके अलावा मरीज़ को पोटैशियम युक्त चीजें जैसे ड्राई फ्रूट्स, नारियल पानी, केला इत्यादि लेने से मना कर दिया जाता है। डॉक्टर आपको पानी भी कम से कम पीने के लिए कह सकता है।
• वस्कुलर एक्सेस का विशेष रूप से ध्यान रखना होता है।
नोट- इस लेख में बताई गई जानकारियों को केवल जानकारी के तौर पर ही लें। इलाज संबंधित कोई भी फैसला डॉक्टर की सलाह पर ही लें।
धन्यवाद
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