इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस क्या है – what is Interstitial cystitis in hindi
इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस (Interstitial cystitis) (आईसी) एक क्रोनिक प्रकार की बीमारी है जिसमें इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति मूत्राशय में दाब (ब्लैडर प्रेशर), मूत्राशय में दर्द तथा कभी – कभी पेल्विक में दर्द महसूस करता है। इसमें इन लक्षणों की गंभीरता मध्यम से ले कर काफी अधिक तक हो सकती है। इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस को पेनफुल ब्लैडर सिंड्रोम या Bladder pain syndrome भी कहा जाता है।
● इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस होने के कारण तथा होने की स्तिथि – interstitial cystitis causes
इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस (Interstitial cystitis) की स्तिथि में मूत्राशय (Bladder) में सूजन हो जाता है। इस कारण इस रोग से ग्रस्ति व्यक्ति के ब्लैडर के सुरक्षा परत (एपिथिलीयम) में खराबी आ जाता है। एपिथिलीयम में खराबी आने के कारण हानिकारक तत्व मूत्र में आने लगते हैं। इस कारण मूत्राशय में काफी जलन होने लगती है। काफी खोज के बाद भी इस बीमारी के सटीक कारणों का पता नही चल पाया है। इसके बावजूद, इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के कुछ अप्रमाणित तथा संभावित कारणों में ऑटोइम्यून रिएक्शन, अनुवांशिकता, संक्रमण तथा एलर्जी शामिल है।
निम्नलिखित स्तिथि में इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस बीमारी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है :
• लिंग – महिलाओं में इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस होने का खतरा काफी अधिक रहता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह रोग होने का अनुपात 9:1 है।
• एंडोमेट्रियोसिस होने की स्तिथि में (यह एक पेन सिंड्रोम है, इसमें गर्भ के भीतरी परत को बनाने वाली कोशिकाएं गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगता है)
• क्रोनिक पेल्विक पेन सिंड्रोम (इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस की स्तिथि क्रोनिक पेल्विक पेन सिंड्रोम जाने पर एक तिहाई महिलाओं को लैप्रोस्कोपिक जांच करवाने के लिए कहा जाता है)।
● इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के लक्षण या पेनफुल ब्लैडर सिंड्रोम के लक्षण – what is interstitial cystitis symptoms in Hindi
इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस की स्तिथि में निम्नलिखित लक्षण देखने को मिल सकते हैं :
• मूत्र त्याग के समय जलन तथा चुभन महसूस करना
• शारीरिक संबन्ध बनाते समय दर्द होना
• मूत्राशय में मूत्र भर जाने पर दर्द, दबाव तथा बेचैनी का बढ़ना तथा मूत्र त्याग करते ही कुछ समय के लिए इन लक्षणों से आराम मिल जाना
• महिलाओं को वजाइना (योनी), मूत्र मार्ग तथा मलाशय में दर्द हो सकता है। जबकि पुरुषों को अंडकोश (स्क्रोटम) तथा गुदा (एनस) में दर्द हो सकता है।
• रात दिन कम – कम मात्रा में ही, जल्दी जल्दी पेशाब होने लगता है।
• किसी व्यक्ति में यह स्तिथि सालों तक भी रह सकता है या यह कुछ दिनों या महीनों में हो ठीक भी हो सकता है।
● इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस की जांच – what is interstitial cystitis Test in Hindi
वर्तमान समय में इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस होने के कारणों का सटीक कारण पता नही चल पाया है। इस कारण इसके लिए कोई खास जांच भी उपलब्ध नही है। इस लिए इसकी जांच दिखने वाले लक्षण, या किसी संक्रमण तथा लक्षण पैदा करने वाले संभावित बीमारी के आधार पर की जाती है। इसमें निम्नलिखित जांच किए जा सकते हैं :
• मूत्र जांच ( इसमें बैक्टीरिया की स्तिथि पता लगाई जाती है)
• सिस्टोस्कोपिक ( इससे मूत्राशय के अंदर की जांच की जाती है तथा मूत्राशय की दीवार पर सूजन, खून बहने या अल्सर का पता लगाने की कोशिश की जाती है)
• ब्लैडर बॉयोप्सी
● इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस का इलाज – what is interstitial cystitis treatment
इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के इलाज में इस बीमारी से आराम मिलने में कई सप्ताह से ले कर कई महीनों तक का समय लग सकता है। इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के इलाज के लिए कोई एक खास इलाज नही है। इस कारण अलग – अलग मरीज़ को इस बीमारी से आराम के लिए अलग – अलग तरह के इलाज की ज़रूरत होती है।
• मौखिक दवाएं
मौखिक दवाओं के सेवन से मरीज़ को दर्द से आराम मिल सकता है तथा मूत्राशय के ऐंठन से भी आराम मिलता है। अगर सूजन किसी एलर्जी रिएक्शन के कारण हुआ है, तो इस प्रकार के इलाज से काफी आराम मिल सकता है।
• ब्लैडर डिस्टेंशन
ब्लैडर डिस्टेंशन इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के इलाज का एक तरीका है। डिस्टेंशन इंटरस्टीशियल तथा सिस्टोस्कोपी होने के बाद लगभग एक तिहाई मरीज़ कुछ आराम महसूस करने लगते हैं। ब्लैडर डिस्टेंशन के तहत ब्लैडर की आकार को बढ़ा दिया जाता है ताकि ब्लैडर की क्षमता को बढ़ाया जा सके। इससे दर्द भी कम होता है। अगर ब्लैडर डिस्टेंशन के बाद मरीज़ को लंबे समय के लिए आराम मिलता है तो इस क्रिया को इलाज के रूप में बार – बार भी किया जा सकता है।
• ब्लैडर इंस्टिलेशनस
इस प्रक्रिया के तहत मरीज़ के मूत्राशय में एक तरल दवाई भड़ने के लिए एक कैथेटर (एक पतले ट्यूब) का उपयोग किया जाता है। मूत्राशय में दवाई भर देने के बाद कैथेटर बाहर निकाल लिया जाता है तथा मरीज़ को उस दवाई को मूत्राशय में ही कुछ देर तक रोके रखने को कहा जाता है। यह इलाज मरीज़ को प्रत्येक एक से दो सप्ताह में दिया जाता है। कुल 6 बार ऐसा किया जाता है। आवश्यकता अनुसार यह इलाज दोहराया भी जा सकता है।
● इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के इलाज के कुछ अन्य विकल्प :
• बोटुलिनम टॉक्सिन ब्लैडर इंजेक्शन : यह दवाई सीधे मरीज़ के मूत्राशय की दीवार में डाला जाता है। यह दवाई लेने के बाद इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के लक्षण में सुधार आने में कुछ महिने से ले कर साल भर से भी अधिक समय लग सकता है। इस दवाई के उपयोग के बाद कुछ शुरुआती दुस्प्रभाव (साइड इफेक्ट) देखने को मिल सकते हैं।
• सैकरल नर्व स्टिमुलेशन : इसमें मूत्राशय के नर्व सप्लाई का मॉड्यूलेशन किया जाता है।
• सर्जरी : इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के इलाज ले लिए सर्जरी कभी – कभी ही किया जाता है। क्यों की मूत्राशय के भाग को हटा देने ले बाद भी दर्द ठीक नही हो पाता है तथा अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। हालांकि जब किसी भी प्रकार का इलाज सफल नही हो पाता है, तब अंतिम विकल्प सर्जरी ही है।
● इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस से बचाव के उपाय – what is interstitial cystitis Prevention
कई ऐसी चीज़े है, जो की आप खुद से या फिजियोथेरेपिस्ट की मदद से कर के इसके लक्षण में काफी सुधार कर सकते हैं।
• आहार में बदलाव
यह देखने को मिला है की कुछ आहार जैसे अल्कोहल, टमाटर, आम, कुछ मसालें, चॉकलेट, कॉफी, खट्टे फल, कृत्रिम रूप से तैयार की गयी मिठास बढ़ाने वाली चीज़े तथा अम्लीय ख़ाद्य पदार्थ इत्यादि इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के लक्षण को और भी गंभीर कर देता है। इस लिए इनके सेवन से बचना काफी ज़रूरी है।
• फिजियोथेरेपी : इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस के मरीज़ में देखा गया है की लगातार पेल्विक फ्लोर मसल एक्सरसाइज (Pelvic floor muscle exercise) करने से दर्द से काफी आराम मिलता है। ऐसे में मरीज़ फिजियोथेरेपिस्ट की मदद ले सकता है।
• ब्लैडर रिट्रेनिंग : दर्द से आराम मिलने के बाद जल्दी – जल्दी पेशाब आना एक समस्या बन जाता है। इस स्तिथि में मरीज़ ब्लैडर रिट्रेनिंग प्रोग्राम (मूत्राशय पुनर्प्रशिक्षण कार्यक्रम) में हिस्सा ले सकता है। इसके तहत मरीज़ को मूत्र को रोके रखने के तरीके सिखाए जाते हैं। इसमें मूत्र त्याग करने के लिए एक समय तय किया जाता है तथा अधिक से अधिक देर तक मूत्र रोकने की तकनीक बताई जाती है। अगर मरीज़ को दिन भर में 7 बार से अधिक तथा रात में 1 बार से अधिक बार मूत्र त्याग के लिए जाना पड़ता है, तो वह इस तकनीक को सिख सकता है।
इंटरस्टीशियल सिस्टाइटिस (Interstitial cystitis) के इलाज के लिए उपलब्ध इन्ही विकल्पों में से डॉक्टर मरीज़ के लक्षण के आधार पर बेहतर से बेहतर इलाज के तरीकों का चुनाव करते हैं।
नोट- इस लेख में बताई गई जानकारियों को केवल जानकारी के तौर पर ही लें। इलाज संबंधित कोई भी फैसला डॉक्टर की सलाह पर ही लें।
धन्यवाद